कहीं कॉमन सिविल कोड हिंदुओं के लिए ही नुक़सानदायी न बन जाए !…….
देखने वाली बात .....
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माननीय सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ‘हिन्दू’ धर्म नहीं जीवन शैली है तो कॉमन सिविल कोड की तो बात ही ख़त्म हो जाती है ।…… देखिये बात बड़ी सीधी है हिन्दू इस देश में बहुसंख्यक हैं अर्थात ऐसे लोगों की संख्या इस देश में ज़्यादा है जो एक समान जीवन शैली को अपनाए हुए हैं …. परन्तु उनमें भी रीति रिवाजों को लेकर भिन्नताएँ पायी जाती हैं ऐसी भिन्नताओं को समाप्त करते हुए हिन्दू विवाह अधिनियम, उत्तराधिकार अधिनियम, गार्जियन्स एंड वार्ड्स एक्ट् आदि क़ानून पहले से ही मौजूद हैं अतः ये सब कॉमन सिविल कोड नहीं तो फिर क्या है? एक बात और … हिन्दू जब धर्म ही नहीं रहा तो उसकी ‘बहुसंख्यकता’ का टैग तो समाप्त हो जाता है ।… कल मैंने एक ब्लॉग में लिखा था कि सवाल उस “धर्म” शब्द को समझने का है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ‘हिन्दू’ के लिए नकारा है । इस लिहाज से आज इस्लाम हमारे देश में धर्म के आधार पर सबसे बड़ा धर्म हो गया है अतः वह बहुसंख्यक होना चाहिए। इधर हिन्दूओं के लिए बने क़ानूनों में हिन्दू के अंतर्गत लिंगायत जैन सिक्ख एवं बौद्ध शामिल हैं। अतः ये हिंदुओं के कॉमन लॉ में पहले से ही शामिल हैं। …बचे मुसलमान, ईसाई एवं पारसी … उनके बीच में कॉमन सिविल कोड बनाइये । बस !!!! हिंदुओं के लिए बने उक्त क़ानून जैसा कि चर्चा में है कॉमन सिविल कोड के तहत जब समाप्त हो जाएँगे तो उक्त अधिनियमों के तहत “हिन्दू” का वह मतलब भी समाप्त हो जाएगा जिसमें लिंगायत, जैन बौद्ध एवं सिक्ख शामिल हैं। यानि ये सब अपने आपको हिन्दू नहीं मानेंगे …. अर्थात उन्हें अलग धर्म की मान्यता मिल जाएगी। इस लिहाज़ से तो हिन्दू और अधिक टूटेगा बनिस्पद मज़बूत होने के । कहीं कॉमन सिविल कोड हिंदुओं के लिए ही नुक़सानदायी न बन जाए !……. जरा ठंडे दिमाग से सोचने की जरूरत है । धन्यवाद ।
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