चरित्र का उद्देश्य……. शिक्षा के निर्माण का होना चाहिए…….
देखने वाली बात .....
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फेसबुक पर एक मित्र की पोस्ट पढ़ रहा था, लिखा था- “शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण है। एक बेहतर इन्सान बनाना है ।”
हम गलत धारणा पाले बैठे हैं….. वास्तविकता में चरित्र का उद्देश्य……. शिक्षा के निर्माण का होना चाहिए…….. मेरी दृष्टि में चरित्र एक जन्मजात गुण होता है। सभी शिक्षित चरित्रवान नहीं होते इसी प्रकार सभी अशिक्षित भी चरित्रहीन नहीं हो सकते। आप शिक्षा के जरिये किसी में चरित्र का निर्माण नहीं कर सकते ….. जो कुछ आप करते हैं वह सिर्फ आदतों को बदलने का काम करते है। एक साधु या ज्ञानी तो चरित्रवान माना जाता है फिर भी वह नीच कर्म कर गुज़रता है…… आखिर क्यों ? एक शिक्षक भी बलात्कार कर देता है….. क्यों ? क्या उसकी शिक्षा में चरित्र निर्माण की वह बात शामिल नहीं थी जिससे वह बलात्कार न करता !……. यदि नहीं थी तो फिर तो सभी शिक्षक बलात्कारी हो जाते ! इस लिए शिक्षा से चरित्र का निर्माण हो ऐसा नहीं लगता । ……. मेरी दृष्टि में शिक्षा सिर्फ आदतों में परिवर्तन करती है जिसे हमने चरित्र निर्माण की संज्ञा दे डाली । जितने भी साधु सन्यासी या धर्म गुरु हैं …….. चाहे किसी भी धर्म के हों वे सिर्फ आदतों से सन्यासी या धर्म गुरु हैं ….. चरित्र से नहीं । महावीर या महात्मा बुद्ध चरित्र से सन्यासी थे आदतों से नहीं । आप महात्मा गांधी की आदतों को सीख कर गांधी नहीं बन सकते । आदतों से एक महान योगी बना जा सकता है । आदतें निरंतर अभ्यास एवं शिक्षा से आत्मसात की जा सकती हैं । जैसा कि मैंने कहा कि चरित्र का उद्देश्य शिक्षा निर्माण हो तो महात्मा बुद्ध या महावीर स्वामी एक चरित्र ही तो थे जिन्होंने शिक्षा का निर्माण किया जो आज तक चली आ रही है जिन्हें हम जैन एवं बौद्ध धर्म कहते हैं। लेटेस्ट चरित्र के तौर पर यदि कोई शख़्स था तो वह अब्दुल कलाम थे। चरित्र वह मूल गुण है जो इंसान में अंततः उभर कर सामने आ ही जाता है ।
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