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आप किसी की मेहनत एवं ईमान की कमाई को काला कैसे कह सकते हैं ?

देखने वाली बात .....
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कालेधन का concept ही गलत है । कालेधन एवं ब्लैकमनी में अन्तर है । धन कब से काला हुआ सोचने की बात है। वास्तविकता में देखा जाए तो धन पर पहला अधिकार तो जनता का ही है…… क्योंकि जनता ही अपने पसीने एवं मेहनत से धन कमाती है न कि शासक वर्ग । देश में जब एकतन्त्र था तब राजा जनता से धन वसूल कर अपना खजाना भरता था । ये दीगर बात है कि वह जनता के कल्याण पर कितना ख़र्च करता था । बात यहाँ उस सोर्स की है जिससे धन शासक वर्ग के पास आता है । उस समय जनता अपने कमाए धन में से राजा जितना मांगता था उतना देकर बाक़ी अपने पास रख लेती थी । राजा को सिर्फ अपने खजाने की चिंता रहती थी जनता के पास कितना है उसे कोई मतलब नहीं रहता था । तब धन काला और सफ़ेद होता ही नहीं था । बाद में अंग्रेज़ आए और हमने लोकतन्त्र को अपना लिया । शासक वर्ग ने अपने खजाने को भरने के लिए टैक्स सिस्टम को अपनाया साथ ही सरकारें घरों के अंदर तक झाँकने लगी कि बताओ तुमने कितना कमाया। जिसने नहीं बताया बस उसे ‘काला’ करार दे दिया गया । धीरे धीरे शासक वर्ग इस बात पर आ आगे बढ़ रहा है कि वह सम्पूर्ण धन को अपना समझने लगा है “बस तुम्हारा काम चल जाए इतना धन तुम्हारे पास रखो बाक़ी राष्ट्र को समर्पित कर दीजिये।” ……. कैश लेस इसी का नाम है। क्या कैश लैस से आज जितना आपके पास है उतना इकट्ठा कर पाएंगे ?? क्योंकि आपके पास जो कार्ड होंगे वे अंडर लिमिट होंगे। बस यही जद्दोजहद या खींचतान चल रही है । जनता द्वारा मेहनत एवं पसीने से कमाए धन को शासक वर्ग के सामने उजागर न करने मात्र से क्या वह “काला” हो जाएगा ? आप किसी की मेहनत एवं ईमान की कमाई को काला कैसे कह सकते हैं ? क्योंकि आज जिनके पास वास्तव में ब्लैकमनी भरी पड़ी है वे बैंको के आगे लाईन में कभी खड़े नज़र नहीं आएंगे ?? लाईन में तो वे ही खड़े हैं जिन्होने अपनी मेहनत एवं ईमान से कमाया है । (नोट – मेरी बात गलत तरीक़ों से कमाए धन के लिए क़तई भी नहीं है)

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