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कल रात सुश्री जयललिता का दुखद निधन हो गया ….. उनके जाने से तमिलनाडू की राजनीति में शून्यता पैदा हो गयी । यह शून्यता पैदा होना लोकतन्त्र में कोई स्थान एवं मायने नहीं रखता है । इसी बात को कुछ यूँ भी समझ सकते हैं कि यदि वे नहीं जातीं तो शायद उनके या उनसे भी ऊपर के क़द का कोई दूसरा नेता पैदा ही नहीं हो पाता । यह बात लोकतन्त्र के लिए नुक़सानदायी है। हाथ में सत्ता है…….. जनता के पैसे से कल्याणकारी जो सीधे गरीबों को फ़ायदा पहुंचाये ऐसी योजनाएँ बना कर लोकप्रियता की सारे हदें पार की जा सकती हैं । मसीहा बनना आसान है……मसीहा बनकर उन्होने जो दिया है उससे आज गरीब से गरीब भी उनकी कृपा दृष्टि से अहसानमंद है उससे कृपा छिन जाने का भय है इसलिए आज वह बिलख बिलख कर रो रहा है । सुश्री जयललिता ने भारत के लोकतन्त्र, लोकतान्त्रिक सिस्टम एवं संविधान को कितना मज़बूत बनाया है कहीं कोई उल्लेख न कोई चर्चा सुनाई नहीं देती है । सवाल यहाँ एक है क्या देश में जनता को ऐसा लोकतन्त्र चाहिए जहाँ गरीब अमीर बनने के बजाय किसी नेता की कृपाओं पर पलता रहे और जब वह विदा ले तब छाती पीट पीट कर रोये !!!!!
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